शुक्रवार, मई 04, 2012

भारत बाबाओं की पैदावार दृष्टि से बेहद उपजाऊ भूमि है


भारत भूमि बाबाओ , स्वामियों और आध्यात्म गुरुओं की पैदावार की दृष्टि से बेहज ही उपजाऊ है और यहाँ का वातावरण इनके फलने फूलने के लिए पूर्णतया अनुकूल | तभी तो हमारे यहाँ न्यूटन , आइंस्टीन ,गैलीलियो , डार्विन भले ही ना होते हो सत्य साईं ,नित्यानद ,निर्मल जरुर होते है | बाबा होना सबसे अच्छा धंधा है इण्डिया में | कितने ही आध्यात्मिक गुरु और स्वयंभू देवता आये और चले गए | कोई यौन शोषण में पकड़ा गया तो किसी के यहाँ करोडो की संम्पति मिली पर जनता की अपार श्रधा इन बाबाओ पर बनी रही |श्रद्धा, आस्था, निष्ठा, आदरभाव कम होने के उलट बढ़ता ही रहा | जड़ता ,अज्ञानता ,नादानी ,नासमझी और बेवकूफी की इससे बड़ी मिशाल और क्या होगी ? इससे बड़ी ढीटताई भला और क्या ?

इन दिनों निर्मल बाबा का दौर चल रहा है |दिल्ली ,मुंबई जैसे बड़े शहरो में निर्मल दरबार लगाए जा रहे ,जिन्हें समागमकहा जाता है |बताते चले कि इन समागमो में शामिल होने वाले प्रत्येक व्यक्ति से २००० रुपये वसूल किये जाते है| तमाम संचार माध्यमो द्वारा निर्मल कृपा घरों तक पहुचाई जा रही है |कृपाओ की इस होम डिलेवरी में लोकतंत्र का चौथा खम्भा भी शरीक है |निर्मल द्वारा अपनी आर्थिक कृपा इन चेनलो पर बरसाने का फायदा बाबा को यह हुआ कि बाबा की प्रसिद्धि में कई गुना इजाफा हुआ है | उनकी आधिकारिक वेबसाईट निर्मल बाबा डॉट कॉम पर दर्ज ब्यूरे देखने से पता चलता है कि अगस्त माह तक उनके सारे समागम हाउसफुल है |बाबा के ये हाउस फुल समागम जनता को सरेआम फुल फूल बना रहे है |

यूँ सरेआम खुल्लमखुल्ला फूल बनाने और आर्थिक मानसिक लूट करने का लाइसेस आपको अध्यात्म , चमत्कार और भगवान के नाम पर मिल ही जाता है |मामला जब आस्थाओं का बना दिया जाता है तो उसमे दखल अंदाजी लगभग नामुमकिन सी हो जाती है | निर्मल बाबा के सन्दर्भ में आप्टन का ये कथन कि जनता को अध्यात्म में विश्वास दिला दीजिए और उसके पास जो कुछ भी है वोह लूट लीजिए ,वह इसमें आपकी हस्ते हस्ते मदद भी करेगी ’’ अक्षरशः ठीक बैठता है |

निमल बाबा खुद में किसी अलौकिक शक्ति होने का दावा करते है और इसी शक्ति के दम पर वे समस्याओं का निराकरण भी पेश करते है |निराकण भी ऐसा कि अच्छे अच्छो के सर चकरा जाए |

दिल्ली में समागम के एक दृश्य पर गौर फरमाईये :-
भक्त : बाबा प्रणाम !!!
बाबा : कभी गर्म सूट सिलवाना था ??? ( बाबा प्रणाम करने की बजाय सीधे एक सवाल भक्त की तरफ उछाल देते है )
भक्त : जैकेट एक लेना है (काफी देर सोचने के बात भक्त कहता है )
बाबा : जैकेट लेना है ?? सूट नहीं लेना ??? (बाबा थोडा डगमगा जाते है क्युकी बाबा ने तो सूट की कहा था और भक्त जेकेट का नाम लेता है )
भक्त : सूट तो शादी में सिलवाया था | (बस अब क्या था भक्त ने आखिर सूट का नाम ले ही लिया ; बाबा हलकी मुस्कान पास करते है )
बाबा : हू.... खरीद कर कब सिलवाया ?
भक्त : बाबा वोह खरीद कर ही सिलवाया था |
बाबा : कहा से सिलवाया था ? (भक्त के ये कहने पर की खरीद कर ही सिलवाया था , बाबा अपनी बात बड़ी चालाखी से घुमा देते है )
भक्त : बगल की दूकान से सिलवाया था |
बाबा : बस यही गलती कर दी | तभी कृपा रुकी हुई है | अगली बार किसी बड़ी दूकान से सिलवाना कृपा आनी शुरू हो जायेगी |

अब बताईये भक्त द्वारा अपनी समस्या का जिक्र किये बिना ही बाबा द्वारा हल बता दिया गया | सूट पहनना किसी समस्या का हल भी है सुनकर ही हंसी आती है |ऐसे ही कभी किसी को कहा जाता है कि हरी चटनी खाओ कृपा आएगी , तो किसी को शर्ट के बटन धीरे धीरे लगाने को |और ये सब इसलिए की आपकी समस्याए हल हो सके| क्या ये समस्याओं को हल करने के नाम पर सीधे-सीधे उन्हें और उलझाने का काम नहीं है ? हमारी जनता कब समझेगी इसे ? सही कहू तो वोह समझना ही नहीं चाहती | उसे अपनी समस्याओं के हल के ऐसे ही शोर्टकट चाहिए | यहाँ कर्म कौन करना चाहता है ? “ हमारे यहाँ आये दिन दोहराए जाने वाले जुमले कर्म करो फल की चिंता मत करो को परिवर्तित करके फल की चिंता करो कर्म मत करो कर दिया जाना चाहिए | किसी बाबा से बड़ी पाखंडी तो ये जनता है| जो पाखण्ड करती है पढ़े लिखे होने का ,पाखंड करती है खुद के सभ्य होने का |

हालाकि कई प्रगति शील विचारक और सामाजिक चिंतक बाबा पर सवालिया निशाँ लगा रहे है और बाबा के इस पाखण्ड को रोकने के लिए प्रयत्नशील है पर ये भी नहीं है कि आध्यात्म , पाखण्ड , लूट का ये सिलसिला निर्मल बाबा के अंत के साथ ही खत्म हो जाएगा | इस बाबा के जाने के बाद कोई दूसरा आएगा ,दूसरे के बाद तीसरा ..... कभी कभी तो लगता है यहाँ की जनता केवल ठगे जाने के लिए ही पैदा होती है | आखिर ये सिलसला कब खत्म होगा ...???? इस तरह के बाबाओ को पैदा करना और उन्हें कायम रखना मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था की जरुरत है | चाहे श्रवण कुमार तीर्थ यात्रा योजना हो या निर्मल समागम ....अंततः सबका एक ही उदेश्य है वर्ग संघर्ष को कमजोर बनाना और मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण पर आधारित इस व्यवस्था को बरकरार रखना | इसी कारण वे सभी सत्ता पूंजीवादी पक्ष ,संस्थाए जो सत्ताधारी वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व करती है ऐसी ही भावनाओं को संबल बना रही है और इनके प्रचार को प्रोत्साहन दे रही है| इसलिए हमें किसी बाबा को भगाने से ज्यादा ध्यान जनता के चेतना स्तर को ऊँचा करने में लगाना होगा | राजनैतिक क्रान्ति से पहले वैचारिक संघर्ष जरुरी है और एक बार हम ऐसा करने में सफल होते है तब चमत्कार कोई निर्मल बाबा नहीं बल्कि मेहनतकश आवाम करेगी |


एक पत्र समस्त दिव्य शक्तियों का दावा करने वालों / बाबाओं के नाम

एक पत्र समस्त दिव्य शक्तियों का दवा करने वालों, बाबाओं, योगियों, धर्म-गुरुओं और ज्योतिषियों के नाम 
(यदि आप इनमें से कोई नहीं हैं, तो आपसे निवेदन है की अगर आप किसी ऐसे महापुरुष को जानते हैं, तो कृपया करके इस पत्र को उनतक पहुँचाने की कृपा करें)

जी प्रणाम,

आप तो जानते ही हैं की ये वैज्ञानिक युग है, तंत्र-मंत्र और साधना पर विज्ञान विश्वास नहीं करता. पर किसी के विश्वास करने या न करने से सत्य नहीं बदल जाता. आज भी बहुत से लोग हैं जो इनपर विश्वास करते हैं. पर विज्ञान हर चीज का प्रमाण मांगता है. और विज्ञान को आजतक कोई प्रमाण नहीं मिला है जिससे वो तंत्र-मंत्र, साधना और इसी प्रकार की अन्य दिव्य शक्तियों को सत्य घोषित कर सके. ऐसा करने के लिए इन विद्याओं के किसी वास्तविक ज्ञाता की आवश्यकता है. अगर आप में ऐसी कोई भी दिव्य शक्ति है तो आपको इसे विज्ञान के समक्ष प्रमाणित करना चाहिए.

अगर वास्तव में तंत्र-मंत्र और साधना में शक्ति है तो इसे विज्ञान के सामने सिद्ध करना पड़ेगा. और अगर ये सभी कुछ विज्ञान के सामने सिद्ध हो गया तो फिर सभी इसपर विश्वास करेंगे और ये सारा ज्ञान कभी लुप्त भी नहीं होगा. और अगर ऐसा हो गया तो विज्ञान और आध्यात्म के बीच होनी वाली बहसें सदा के लिए खत्म हो जायेंगी. और फिर विज्ञान और आध्यात्म मिलकर इस ब्रह्माण्ड के रहस्यों को सुलझानें का प्रयास करेगा. कृपया करके इन बातों पर गंभीरता से विचार करिये और अपनी किसी भी शक्ति को विज्ञान के समक्ष प्रमाणित कीजिए, ताकि प्राचीन ज्ञान कभी भी लुप्त न होने पाए. अगर ऐसा नहीं किया जायेगा विज्ञान हमेशा प्राचीन मान्यताओं की खिल्ली उड़ाता रहेगा, और इन सभी विद्याओं को सिर्फ एक ढोंग और अन्धविश्वास की संज्ञा देता रहेगा. यदि आप चाहें तो विज्ञान की इन धारणाओं को बदल सकते हैं. सत्य क्या है ये तो इन विद्याओं का कोई ज्ञाता ही जान सकता है. क्या इन तंत्र-मंत्र और साधनाओं में वास्तव में शक्तियां होती हैं या ये सिर्फ एक ढोंग और दिखावा ही है. इसीलिए मेरी आप सभी से जो इन विद्याओं को जानने का दावा करते हैं, ये प्रार्थना है की आप सिर्फ अपने निजी स्वार्थ के लिए इस समाज को गर्त में न ले जायें और व्यर्थ में उनमें अन्धविश्वास न पैदा करें और विज्ञान का साथ दें. अगर वास्तव में ये विद्याएँ सत्य हैं तो इसे विज्ञान के समक्ष प्रमाणित करें.

अगर आप मेरी बातों से सहमत हैं और इन विद्याओं को विज्ञान के समक्ष प्रमाणित करना चाहते हैं, हम आपको एक जानकारी देना चाहेंगे की आप यह कैसे कर सकते हैं.
इसके लिए आप James Randi का चैलेन्ज स्वीकार कर सकते हैं. James Randi ने इन बातो को विज्ञान के आगे सिद्ध करने पर 1,000,000 US$ यानि तकरीबन पांच करोड़ रूपए का इनाम रक्खा है. इसके बारे में आप यहाँ से पढ़ सकते हैं... Click Here
अगर आप ज्यादा दूर नहीं जाना चाहते हैं तो आपको जानकारी देना चाहेंगे की भारत में ही एक संस्था है जिसका नाम है पंजाब तर्कशील सोसाइटी. इस संस्था की कुल 22 शर्तें हैं, जिसमें से एक शर्त भी पूरा करने पर आपको संस्था की ओर से बीस लाख रूपए दिए जायेंगे. अगर आप इस सोसाइटी की शर्त स्वीकार करने के लिए तैयार हैं तो इसके लिए आपको पाँच हजार रूपए संस्था में जमानत के तौर पर जमा करने होंगे. उसके बाद उनकी टीम आपका प्रदर्शन देखेगी. अगर आप अपनी बात सिद्ध कर देते हैं तो आपको बीस लाख रूपए के इनाम के अतिरिक्त आपकी पाँच हजार रूपए जमानत राशि भी लौटा दी जायेगी. परन्तु यदि आप अपनी बात  सिद्ध नहीं कर पाते हैं तो संस्था का समय बरबात करने के कारण आपकी पाँच हजार रूपए की जमानत राशि जब्त कर ली जायेगी. इस संस्था की समस्त जानकारी और नियम व शर्तों के लिए यहाँ क्लिक करें... उनकी ये 22 शर्तें निम्नलिखित हैं-
1.   Read the serial number of a sealed-up currency note.
2.   Produce an exact replica of a currency note.
3.   Stand stationary on burning cinders for half a minute without blistering the feet with the help of his god.
4.   Materialise from nothing an object we ask.
5.   Move or bend a solid object using psychokinetic power.
6.   Read the thought of another person using telepathic powers.
7.   Make an amputated limb grow even one inch by prayer, spiritual powers, Lourdes water, holy ash, prayer, blessings etc.
8.   Levitate in the air by Yogic power or any other power.
9.   Stop the heart beat for five minutes by Yogic power.
10. Walk on water.
11. Leave the body in one place and materialise in another place.
12. Stop breathing for thirty minutes by Yogic power.
13. Develop creative intelligence or get enlightened through transcendental or any other type of meditation.
14. Speak an unknown language as a result of rebirth or by being possessed by holy or evil spirit.
15. Produce a spirit or ghost to be photographed.
16. Disappear from a film when photographed as Uri Geller claimed.
17. Get out of a locked room by divine power.
18. Increase the quantity by weight of a substance.
19. Detect a hidden object.
20. Convert water into petrol or wine.
21. Convert wine into blood.
22. Pick out correctly – Within a Margin of five percent error – those males, females, the living and the dead from a set of ten palm prints or ten astrological charts giving the exact time of birth correct the minute, and places of birth with their latitudes and long longitudes.

इसके अतिरिक्त अब्राहम कुवंर ने भी ऐसी ही चुनौती दी है.
कुल मिलकर बात सिर्फ पैसो की ही नहीं हैं, ये बात है समस्त मानव सभ्यता की. पैसे तो एक चुनौती के तौर पर दिए जा रहे हैं क्यूंकि विज्ञान चमत्कार, ज्योतिष शास्त्र, तंत्र-मंत्र विद्या इत्यादि, को  सिर्फ एक ढोंग और अन्धविश्वास मानता है. अगर उसके सामने ये सारी बाते सिद्ध हो जाएँ तो इसमें गलत ही क्या है.
अब आपसे विनती है की कृपया आप मेरी इन बातो पर विचार करें और समाज को एक प्रगतिशील राह पर ले जाएँ.

धन्यवाद
अनमोल साहू

गुरुवार, मई 03, 2012

समय के बारे में जानने योग्य कुछ महत्वपूर्ण तथ्य


यह लेख समय पर कुछ टिप्पणियों का संग्रहण है।

1.समय का आस्तित्व है। यह एक बहुत साधारण सा लगने वाला लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न है। क्या समय का अस्तित्व है? हां समय का अस्तित्व है, आखिर हम लोग अपनी अलार्म घड़ीयोँ मे से समय निर्धारित करते ही है! समय ब्रह्माण्ड को क्षणो को एक व्यवस्थित श्रृंखला मे रखता है। ब्रह्माण्ड हर क्षण भिन्न अवस्था मे रहता है, ब्रह्माण्ड की किसी भी क्षण की अवस्था किसी अन्य क्षण की अवस्था के समान नही होती है। यदि समय इन अवस्थाओं को एक व्यवस्थित श्रृंखला मे न रखे तो अनुमान लगाना कठिन है कि कैसी अव्यवस्था होगी ? वास्तविक प्रश्न है कि क्या समय मूलभूत है अथवा उत्पन्न है? एक समय हम मानते थे कि तापमान प्रकृति का बुनियादी गुणधर्म है, लेकिन अब हम जानते है कि वह परमाणु के आपसी टकराव से उत्पन्न होता है। लेकिन क्या समय की उत्पत्ती होती है, या वह ब्रह्माण्ड का बुनियादी गुणधर्म है ? इसका उत्तर कोई नही जानता है। लेकिन मै अपनी शर्त इसके बुनियादी गुणधर्म होने पर लगाउंगा लेकिन इसे सिद्ध करने हमे क्वांटम गुरुत्वको समझना जरूरी है।

2.भूतकाल और भविष्यकाल भी समान रूप से वास्तविक होते है। इस तथ्य को सभी स्वीकार नही करते है, लेकिन यह तथ्य है। सहज ज्ञान से हम मानते है कि केवल वर्तमान वास्तविक है, भूतकाल स्थायी है और इतिहास मे दर्ज है, जबकि भविष्य अभी तक आया नही है। लेकिन भौतिकी के अनुसार भूतकाल और भविष्य की हर घटना वर्तमान मे अंतर्निहित है। इसे रोजाना के कार्यो मे देखना कठिन है क्योंकि हम किसी भी क्षण मे ब्रह्माण्ड की अवस्था नही जानते है, ना ही कभी जान पायेंगे। लेकिन समीकरण कभी गलत नही होते है। आइंस्टाइन के अनुसार
अब तक के तीन आयामो मे अस्तित्व के विकास की बजाय चार आयामो को भौतिक वास्तविकता के रूप मे स्वीकार करना ज्यादा प्राकृतिक है।
इसमे चतुर्थ आयाम समय है।

3.हम किसी का समय का अनुभव भिन्न होता है। यह भौतिकी तथा जीव शास्त्र दोनो स्तरों पर सत्य है। भौतिकी मे इतिहास मे हमने न्युटन के समय के दृष्टिकोण को देखा है जिसमे समय सभी के लिए सार्वभौमिक और समान था। लेकिन आइंस्टाइन ने यह प्रमाणित कर दिया कि समय भिन्न भिन्न स्थानो पर गति और गुरुत्व के अनुसार भिन्न होता है। विशेषतः यह प्रकाशगति के समीप यात्रा करने वाले व्यक्ति या श्याम वीवर के जैसे अत्याधिक गुरुत्व वाले स्थानो पर थम सा जाता है। प्रकाशगति से यात्रा करने वाला व्यक्ति यदि पृथ्वी पर वापिस आये तो उसके एक वर्ष मे पृथ्वी पर हजारो वर्ष व्यतित हो चुके होंगे। जैविक या मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी किसी परमाणु घड़ी द्वारा मापा गया समय हमारी आंतरिक लय और स्मृतियोँ के संग्रह से ज्यादा महत्वपूर्ण नही है। समय का प्रभाव किसी घड़ी से ना होकर व्यक्ति पर, उसके अनुभवो पर निर्भर करता है। यह एक प्रमाणित तथ्य है कि जैसे हम उम्रदराज होते है समय तेजी से व्यतित होता है।

4.आप भूतकाल मे जीते है। सटीक तौर पर कहा जाये तो आप 80 मीलीसेकंड भूतकाल मे जीते है। यदि आप एक हाथ से नाक को छुये और ठीक उसी समय दूसरे हाथ से पैरो को छुये, आप को महसूस होगा कि दोनो कार्य एक साथ हुये है। लेकिन पैरो से संकेतो को मस्तिष्क तक पहुंचने मे लगने वाला समय,नाक से संकेतो को मस्तिष्क तक पहुंचने मे लगने वाले समय से ज्यादा है। इसका अर्थ स्पष्ट है कि हमारी आंतरिक चेतना का सुचना जमा करने मे समय लगता है तथा हमारा मस्तिष्क सारी आगत सुचनाओं के इकठ्ठा होते तक प्रतिक्षा करता है, उसके पश्चात उसे वर्तमानके रूप मे महसूस करता है। हमारे मस्तिष्क का यह वर्तमान’ वास्तविक वर्तमान से 80 मीलीसेकंड पिछे होता है, यह अंतराल प्रयोगों द्वारा प्रमाणित है।

5.आपकी स्मृति आपकी अपनी मान्यता से कमजोर होती है। आपका मस्तिष्क भविष्य की कल्पना के लिये ठीक वैसी ही प्रक्रिया अपनाता है जब आप किसी भूतकाल की घटना को याद करते है। यह प्रक्रिया किसी लिखे नाटक के मंचन की बजाये वीडीयो को रीप्ले करने के जैसे ही है। किसी कारण से यदि नाट्य लेख गलत हो तो आप अपनी मिथ्या स्मृति का सहारा लेते है जो कि वास्तविकता के जैसा ही प्रतित होता है। यह एक प्रमाणित तथ्य है कि न्यायालयों मे चश्मदीद गवाहो के बयान सबसे कम भरोसेमंद होते है।

6.हमारी चेतना अपनी समय के साथ हेरफेर की क्षमता पर निर्भर होती है। हमे पूर्णतः ज्ञात नही है लेकिन हमारी चेतना के लिये काफी सारी संज्ञानात्मक क्षमतायें अनिवार्य होती है। लेकिन हमारी चेतना समय तथा प्रायिकता के साथ हेरफेर करने मे सक्षम है और यह मानव चेतना का एक महत्वपूर्ण गुण है। जलचर जीवन के विपरीत, धरती के जीव जिनकी दृश्य क्षमता सैकड़ो मीटर तक होती है, एक साथ कई पर्यायो पर विचार कर सर्वोतम को चुन सकने मे सक्षम है। वे भविष्य का पूर्वानुमान लगा सकते है। एक चीता 70-80 किमी की गति से रफ्तार से दौड़ते हुये चिंकारे की अगली अवस्था का अनुमान लगा कर छलांग लगा सकता है और दबोज सकता है। उसकी चेतना समय के साथ हेरफेर मे सक्षम है। व्याकरण की उत्पत्ती के साथ हम भविष्य की काल्पनिक स्थितियोँ का वर्णन कर सकते है। भविष्य की कल्पना की क्षमता की अनुपस्थिति मे चेतना का अस्तित्व ही संभव नही है।

7.समय के साथ अव्यवस्था बढती है। भूतकाल और भविष्य के हर अंतर के हृदय मे होते है स्मृति, बुढा़पा,कारण-कार्य-सिद्धांत, जो दर्शाते है कि ब्रह्माण्ड व्यवस्था से अव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है। किसी भौतिक विज्ञानी के शब्दो मे एन्ट्रोपी बढ़ रही है। व्यवस्था(कम एन्ट्रोपी) से अव्यवस्था(अधिक एन्ट्रोपी) की ओर बढने के एकाधिक पथ होते है, इसलिए एन्ट्रोपी का बढ़ना प्राकृतिक लगता है। आप किसी फुलदान को कितने ही सारे तरीकों से तोड़ सकते है। लेकिन भूतकाल की कम एन्ट्रोपी की व्याख्या के लिए हमे बिग बैंग (महाविस्फोट) तक जाना होगा। हमने उस समय के कुछ कठिन और जटिल प्रश्नो का उत्तर ज्ञात नही है जैसे : बिग बैंग के समय एन्ट्रोपी इतनी कम क्यों थी ? बढ़ती हुयी एन्ट्रोपी स्मृति, कारण-कार्य-सिद्धान्त और अन्य के लिये कैसे उत्तरदायी है?

8.जटिलता आती है और जाती है। इंटेलीजेंट डीजाइन के समर्थकों(क्रियेशनीस्ट) के अतिरिक्त अधिकतर व्यक्तियों को व्यवस्थित (कम एन्ट्रोपी) तथा जटिलता के मध्य अंतर समझने मे परेशानी नही होती है। एन्ट्रोपी बढती है अर्थात अव्यवस्था बढ़ती है लेकिन जटिलता अल्पकालिक होती है, वह जटिल विधियोँ से कम और ज्यादा होते रहती है। जटिल संरचनाओं के निर्माण का कार्य ही अव्यवस्था को बढा़वा देना है, जैसे जीवन का उद्भव। इस महत्वपूर्ण घटना को पूरी तरह से समझना अभी बाकि है।
9.उम्रदराज होने की विपरीत प्रक्रिया संभव है। हमारा उम्रदराज होना अव्यवस्था मे वृद्धि के सिद्धांत के अनुरूप ही है। लेकिन सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मे अव्यवस्था मे वृद्धी होना चाहीये, किसी वैयक्तिक भाग मे नही। किसी भाग मे अव्यवस्था मे कमी आ सकती है, बशर्ते सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मे अव्यवस्था मे बढ़ोत्तरी हो। ऐसा ना हो तो किसी रेफ्रिजरेटर का निर्माण असंभव हो जाता। किसी जीवित संरचना के लिए समय की धारा को पलटना तकनीकी रूप से चुनौती भरा जरूर है लेकिन असंभव नही है। हम इस दिशा मे नयी खोज भी कर रहे है जिसमे स्टेम कोशीकायें के साथ साथ मानव पेशीयों का निर्माण भी शामील है। एक जीवविज्ञानी ने कहा था कि
आप और मै हमेशा जीवित नही रहेंगे, लेकिन अपने पोतों के लिए मै ऐसा नही कह सकता।

10.एक जीवन = एक अरब धड़कन : जटिल जैविक संरचनाओं की मृत्यु होती है। यह किसी व्यक्ति के लिए दुखद हो सकता है लेकिन प्रकृति के लिए यह एक अनिवार्य प्रक्रिया है जो पुराने को हटाकर नये के लिए मार्ग बनाती है। इसके लिए एक साधारण परिमाण नियम है जो कि प्राणी चयापचय तथा उसके भार से संबधित है। बड़े प्राणी अधिक जीते है लेकिन उनकी चयापचय प्रक्रिया धीमी होती है और धड़कनो की गति धीमी होती है। छछूंदर से लेकर ब्लू व्हेल तक जीवन समान होता है, लगभग डेढ़ अरब धड़कने। समय सभी के सापेक्ष है, सभी की जीवन अवधि समान होती है। यह तब तक सत्य रहेगा जब तक आप इसके पहले वाले बिंदु मे सफलता हासील नही कर लेते!