भारत भूमि बाबाओ ,
स्वामियों और
आध्यात्म गुरुओं की पैदावार की दृष्टि से बेहज ही उपजाऊ है और यहाँ का वातावरण
इनके फलने फूलने के लिए पूर्णतया अनुकूल | तभी तो हमारे यहाँ न्यूटन , आइंस्टीन ,गैलीलियो , डार्विन भले ही ना
होते हो सत्य साईं ,नित्यानद ,निर्मल जरुर होते है | बाबा होना सबसे अच्छा धंधा है इण्डिया में |
कितने ही आध्यात्मिक
गुरु और स्वयंभू देवता आये और चले गए | कोई यौन शोषण में पकड़ा गया तो किसी के यहाँ
करोडो की संम्पति मिली पर जनता की अपार श्रधा इन बाबाओ पर बनी रही |श्रद्धा, आस्था, निष्ठा, आदरभाव कम होने के
उलट बढ़ता ही रहा | जड़ता ,अज्ञानता ,नादानी ,नासमझी और बेवकूफी की इससे बड़ी मिशाल और क्या होगी ? इससे बड़ी ढीटताई
भला और क्या ?
इन दिनों निर्मल बाबा का दौर चल रहा है |दिल्ली ,मुंबई जैसे बड़े शहरो में निर्मल दरबार
लगाए जा रहे ,जिन्हें “समागम” कहा जाता है |बताते चले कि इन समागमो में शामिल होने वाले
प्रत्येक व्यक्ति से २००० रुपये वसूल किये जाते है| तमाम संचार माध्यमो द्वारा निर्मल कृपा
घरों तक पहुचाई जा रही है |कृपाओ की इस होम डिलेवरी में लोकतंत्र का चौथा
खम्भा भी शरीक है |निर्मल द्वारा अपनी “ आर्थिक कृपा ” इन चेनलो पर बरसाने का फायदा बाबा को यह
हुआ कि बाबा की प्रसिद्धि में कई गुना इजाफा हुआ है | उनकी आधिकारिक वेबसाईट निर्मल बाबा डॉट
कॉम पर दर्ज ब्यूरे देखने से पता चलता है कि अगस्त माह तक उनके सारे समागम हाउसफुल
है |बाबा के
ये हाउस फुल समागम जनता को सरेआम फुल फूल बना रहे है |
यूँ सरेआम खुल्लमखुल्ला फूल बनाने और आर्थिक मानसिक लूट करने का
लाइसेस आपको अध्यात्म , चमत्कार और भगवान के नाम पर मिल ही जाता है |मामला जब आस्थाओं का बना दिया जाता है तो
उसमे दखल अंदाजी लगभग नामुमकिन सी हो जाती है | निर्मल बाबा के सन्दर्भ में आप्टन का ये
कथन कि “ जनता को
अध्यात्म में विश्वास दिला दीजिए और उसके पास जो कुछ भी है वोह लूट लीजिए ,वह इसमें आपकी हस्ते
हस्ते मदद भी करेगी ’’ अक्षरशः ठीक बैठता है |
निमल बाबा खुद में किसी अलौकिक शक्ति होने का दावा करते है और इसी
शक्ति के दम पर वे समस्याओं का निराकरण भी पेश करते है |निराकण भी ऐसा कि अच्छे अच्छो के सर चकरा
जाए |
दिल्ली में समागम के एक दृश्य पर गौर फरमाईये :-
भक्त : बाबा प्रणाम !!!
बाबा : कभी गर्म सूट सिलवाना था ??? ( बाबा प्रणाम करने की बजाय सीधे एक सवाल
भक्त की तरफ उछाल देते है )
भक्त : जैकेट एक लेना है (काफी देर सोचने के बात भक्त कहता है )
बाबा : जैकेट लेना है ?? सूट नहीं लेना ??? (बाबा थोडा डगमगा जाते है क्युकी बाबा ने
तो सूट की कहा था और भक्त जेकेट का नाम लेता है )
भक्त : सूट तो शादी में सिलवाया था | (बस अब क्या था भक्त ने आखिर सूट का नाम ले
ही लिया ; बाबा
हलकी मुस्कान पास करते है )
बाबा : हू.... खरीद कर कब सिलवाया ?
भक्त : बाबा वोह खरीद कर ही सिलवाया था |
बाबा : कहा से सिलवाया था ? (भक्त के ये कहने पर की खरीद कर ही सिलवाया था ,
बाबा अपनी बात बड़ी
चालाखी से घुमा देते है )
भक्त : बगल की दूकान से सिलवाया था |
बाबा : बस यही गलती कर दी | तभी कृपा रुकी हुई है | अगली बार किसी बड़ी दूकान से सिलवाना कृपा
आनी शुरू हो जायेगी |
अब बताईये भक्त द्वारा अपनी समस्या का जिक्र किये बिना ही बाबा द्वारा
हल बता दिया गया | सूट पहनना किसी समस्या का हल भी है सुनकर ही हंसी आती है |ऐसे ही कभी किसी को
कहा जाता है कि हरी चटनी खाओ कृपा आएगी , तो किसी को शर्ट के बटन धीरे धीरे लगाने को |और ये सब इसलिए की
आपकी समस्याए हल हो सके| क्या ये समस्याओं को हल करने के नाम पर सीधे-सीधे
उन्हें और उलझाने का काम नहीं है ? हमारी जनता कब समझेगी इसे ? सही कहू तो वोह
समझना ही नहीं चाहती | उसे अपनी समस्याओं के हल के ऐसे ही शोर्टकट चाहिए | यहाँ कर्म कौन करना
चाहता है ? “ हमारे यहाँ आये दिन दोहराए जाने वाले जुमले “ कर्म करो फल की चिंता मत करो ” को परिवर्तित करके “
फल की चिंता करो
कर्म मत करो “ कर दिया जाना चाहिए | किसी बाबा से बड़ी पाखंडी तो ये जनता है| जो पाखण्ड करती है
पढ़े लिखे होने का ,पाखंड करती है खुद के सभ्य होने का |
हालाकि कई प्रगति शील विचारक और सामाजिक चिंतक बाबा पर सवालिया निशाँ
लगा रहे है और बाबा के इस पाखण्ड को रोकने के लिए प्रयत्नशील है पर ये भी नहीं है
कि आध्यात्म , पाखण्ड , लूट का ये सिलसिला निर्मल बाबा के अंत के साथ ही खत्म हो जाएगा |
इस बाबा के जाने के
बाद कोई दूसरा आएगा ,दूसरे के बाद तीसरा ..... कभी कभी तो लगता है यहाँ की जनता केवल ठगे
जाने के लिए ही पैदा होती है | आखिर ये सिलसला कब खत्म होगा ...???? इस तरह के बाबाओ को
पैदा करना और उन्हें कायम रखना मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था की जरुरत है | चाहे श्रवण कुमार
तीर्थ यात्रा योजना हो या निर्मल समागम ....अंततः सबका एक ही उदेश्य है वर्ग
संघर्ष को कमजोर बनाना और मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण पर आधारित इस व्यवस्था को
बरकरार रखना | इसी कारण वे सभी सत्ता पूंजीवादी पक्ष ,संस्थाए जो सत्ताधारी वर्गों
के हितों का प्रतिनिधित्व करती है ऐसी ही भावनाओं को संबल बना रही है और इनके
प्रचार को प्रोत्साहन दे रही है| इसलिए हमें किसी बाबा को भगाने से ज्यादा ध्यान
जनता के चेतना स्तर को ऊँचा करने में लगाना होगा | राजनैतिक क्रान्ति से पहले वैचारिक संघर्ष
जरुरी है और एक बार हम ऐसा करने में सफल होते है तब चमत्कार कोई निर्मल बाबा नहीं
बल्कि मेहनतकश आवाम करेगी |